Sunday, September 6, 2015

ये ख्वाहिशों के मंज़र
मंज़िलों के सर चढ़े हैं
हर मील के पत्थर तक
ख्वाबों के क़ाफिले हैं
ऐ ज़िन्दगी तुझ से मिलकर
जलसा यूं मनाना है
हर साल तेरी मौजों को
सीनें में सजाना है
ग़र आह कहीं निकले
तमन्ना को फिर बड़ा दे
मंज़िलों को पीछे छोड़ूं
सपनों में ठिकाना है।

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