Thursday, June 25, 2015

ये बौछार...

ये बौछारों के सिलसिले
तेरी याद दिलाते हैं
पहले आंखें नम होती थी
अब हम हो जाते हैं..
पानी की जो बूंद
पलकों को छूती है
तेरे लब हो जाते हैं...
ठंडी सी ये सिहरन
रोमों में जो है दौड़ी
तेरा संग हो जाती हैं...
हौले से गर्दन के नीचे
ढलकी सी ये धार
तेरी अंगुली हो जाती है...
बरसातों की टक टक
सीनें में लगती है
तेरी धड़कन हो जाती है...
पत्तों की सर सर
कानों को सहलाती है
तेरी आहट हो जाती है....

मिट्टी पानी में रम कर
जीवन बन जाती है
तुझ में रम कर मेरी देह
नया जीवन पाती है!



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