Friday, February 13, 2015

Khas Kisse...

ज़िन्दगी तेरी ज़िद्द के
किस्से तमाम है
न तू आम है
न हम आम हैं.

कुछ खास सा लगा  था
जब तुझसे दिल मिला  था
हर लम्हा आशिकी था
जब तुझमें मैं रमा था
इस रहग़ुज़र से गुज़रे
हम सुबह शाम हैं
न तू आम है
न हम आम हैं.

आता है याद ख्वाबों में
तेरा और बढ़ते आना
कभी तेरा यूँ झिड़कना
कभी मेरा यूँ मनाना
गरीब की  तिजोरी
पर फिर भी शान है
न तू आम है
न हम आम हैं.

हमराह मेरे तुझसे
शिकायत तो थी मुझे
तेरे पास न होने की
आदत भी थी मुझे
मंज़िल तक न  चला
फिर भी साथ तो  चला
कुछ देर के लिए ही
तू अपना सा लगा
समझाया बहुत खुद को
फिर क्यों परेशान है

ज़िन्दगी तेरी ज़िद्द के
किस्से तमाम हैं
न तू आम है
न हम आम हैं.

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